त्रिभंगी छंद
10/8/8/6
वह अति बड़ भागी, प्रभु अनुरागी, जन सहभागी, बन चलता।
सबके प्रति ममता, दिल में समता, दयावान बन, नित रहता।
प्रिय हृदय विशाला, कर में प्याला, कंचन जैसा, चमकत है।
नहिं क्रोध कभी है, नहिं दंभी है, शांत पथिक बन, चहकत है।
उर आंगन मोहक, जग का पोषक, विनय भावना, नृत्य करे।
मन सुंदर सत्यम, सहज शिवम सम,जगत हृदय धर, प्रीति करे।
मधुरा सुधरा बन, विनय बदर तन, झमझम झमझम, नीर भरे।
भावुकता जागे, नैतिक आगे, राग अलापे, हाथ धरे।
मधु मालती छंद
7/7/7/7
चले आना, वहां मिलना, जहां केवल, तुम्हीं हम हों।
नहीं भूलो, कभी इसको, सदा मन से, मिटे गम हों।
तुम्हें पाकर, खुशी होगी, निराला मन, सहज गमके।
जरा इस पर, करो चिंतन, जरूरी है, हृदय महके।
तुम्हें मन कर, रहा देखें, लिपट जाएं, उजाला हो।
तिमिर मन का, छटे हरदम, दिवाकर का, शिवाला हो।
यही तुमसे, निवेदन है, इसे स्वीकृति, सहज देना।
रुको मत तुम,अभी आओ, हृदय धड़कन, समझ लेना।
तुलसी छंद
10/8/12
शिव भारत प्यारा, विश्व सितारा, यह सबका सहयोगी।
सब लोग यहां के, सुह्रद जगत के, सबके सब हैं योगी।
निष्कपट भाव है, स्नेह छांव है, सब लगते अति प्रेमिल।
सबमें अनुरागा, मानव जागा, रसना अतिशय स्नेहिल।
है कोमल मनुजा, अनुजा तनुजा, सबके उर अमृत है।
सब भावुक हृदया, दया धर्ममय, जिह्वा पर संस्कृत है।
मधु रस से सिंचित, निर्मल वाणी, से बहती रस धारा।
अतिशय व्यापक है, शुभमत प्यारा,भारत देश हमारा।
रचनाकार: डॉक्टर रामबली मिश्र
९८३८४५३८०१
Haaya meer
02-Nov-2022 05:43 PM
Amazing
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Muskan khan
02-Nov-2022 05:02 PM
Well done ✅
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Sachin dev
02-Nov-2022 04:32 PM
Nice 👌
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